धर्म एवं दर्शन >> सोलह संस्कार सोलह संस्कारस्वामी अवधेशानन्द गिरि
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भारतीय संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। प्राचीन काल में तो प्रत्येक कार्य का आरंभ संस्कार से ही होता था...
प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश
भारतीय संस्कृति संस्कारों पर ही आधारित है। प्राचीन काल में तो प्रत्येक कार्य का आरंभ संस्कार से ही होता था, किंतु वर्तमान में मनुष्य के पास न समय है न विश्वास। इसलिए आवश्यक प्रमुख कार्यों में ही संस्कार किये जाते हैं। यही कारण है कि संस्कारों की संख्या चालीस से घटकर सोलह रह गई है।
मनुष्य चाहे जिस जाति में जन्म ले, अपवित्र शरीरों से जन्म लेने के कारण वह तब तक शूद्र बना रहता है, जब तक कि उसका उपनयन संस्कार नहीं हो जाता। उपनयन के समय ही उसे गायत्री मंत्र के द्वारा गुरुदीक्षा प्राप्त होती है और वह ’द्विज’ संज्ञा को प्राप्त होकर वेदाध्ययन आदि का अधिकारी बनता है।
यों तो गर्भाधान के समय से ही संस्कारों की श्रृंखला आरंभ हो जाती है। पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्न प्राशन, चूडाकर्म और कर्णवेध के पश्चात ही उपयन संस्कार किया जाता है। कुछ लोग वेदारम्भ को उपनयन का ही एक अंग मानते हैं। वेदाध्ययन पूर्ण होने पर केशान्त संस्कार का विधान है।
विवाह संस्कार गृहस्थ जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। आवस्थ्याधान में गृह्याग्नि का और श्रौताधान में गार्हपत्यादि आग्नित्रय का संग्रह किया जाता है। अन्त्येष्टि संस्कार अंतिम संस्कार है। इनका आश्रय मानवमात्र को लेना होता है। इस प्रकार प्रस्तुत पुस्तक में सभी संस्कारों का सांगोपांग वर्णन हुआ है। हमारा विश्वास है कि पुस्तक सभी के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
मनुष्य चाहे जिस जाति में जन्म ले, अपवित्र शरीरों से जन्म लेने के कारण वह तब तक शूद्र बना रहता है, जब तक कि उसका उपनयन संस्कार नहीं हो जाता। उपनयन के समय ही उसे गायत्री मंत्र के द्वारा गुरुदीक्षा प्राप्त होती है और वह ’द्विज’ संज्ञा को प्राप्त होकर वेदाध्ययन आदि का अधिकारी बनता है।
यों तो गर्भाधान के समय से ही संस्कारों की श्रृंखला आरंभ हो जाती है। पुंसवन, सीमन्तोन्नयन, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्न प्राशन, चूडाकर्म और कर्णवेध के पश्चात ही उपयन संस्कार किया जाता है। कुछ लोग वेदारम्भ को उपनयन का ही एक अंग मानते हैं। वेदाध्ययन पूर्ण होने पर केशान्त संस्कार का विधान है।
विवाह संस्कार गृहस्थ जीवन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण संस्कार है। आवस्थ्याधान में गृह्याग्नि का और श्रौताधान में गार्हपत्यादि आग्नित्रय का संग्रह किया जाता है। अन्त्येष्टि संस्कार अंतिम संस्कार है। इनका आश्रय मानवमात्र को लेना होता है। इस प्रकार प्रस्तुत पुस्तक में सभी संस्कारों का सांगोपांग वर्णन हुआ है। हमारा विश्वास है कि पुस्तक सभी के लिए उपयोगी सिद्ध होगी।
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